नई मुंबई : ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने भारतीय मूल के ऋषि सुनक ने एक ऐसा इतिहास लिख दिया जिसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा। ब्रिटेन एक ऐसा देश है जहां पर राष्ट्रवादी जनता सिर्फ अपने देश के लोगों को ही पीएम की कुर्सी पर देखना चाहती है लेकिन, ऋषि सुनक ने ये सोच बदल दिया। सिर्फ पहले अश्वेत और एक हिंदू है जो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने हैं बल्कि वो ऐसे देश से रिश्ता रखते हैं जिस पर ब्रिटेन ने 200 साल तक राज किया था। इतना ही नहीं ब्रिटिश शासन में यहां पर aprawasiyon के लिए अलग तरह की मानसिकता है। ऐसे लोग जो ब्रिटेन आते हैं, उनके खिलाफ एक अलग ही मुहिम चढ़ाई जाती है। कुछ लोग तर्क देते हैं की, प्रवासी समुदायों को संस्कृति के कारण के लिए आगे नहीं करना चाहिए। उनकी एक अलग पहचान देश में बरकरार ने चाहिए।
ब्रिटेन में पर्यटन प्रवासियों को कभी खुले दिल से नहीं अपनाते लेकिन यहां ऋषि सुनक ने ब्रिटेन की पुरी कहानी ही बदल दी। ब्रिटेन ने ना सिर्फ सुनक को अपनाया है बल्कि अपने देश का प्रधानमंत्री बना कर यहां की डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सिर्फ ऋषि को ही सबसे बेहतर माना है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने पर भारत के लोगों को भी काफी खुशी हुई है और गर्व भी महसूस हुआ है वहीं दुनिया के हर हिस्से में बेस भारतीय उनके 10% पहुंचने पर काफी खुश हैं लेकिन, यहां ऋषि के लिए चॅलेंज आसान नहीं रहने वाली है क्योंकि, सुनक को ऐसे समय में kamanson की गई है। जब देश के हालत ठीक नहीं है ट्रस्ट ने जब इस्तीफा दिया और पूर्व पीएम बोरिस जॉनसन पीछे हटे तो ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने की राह आसान हो गई थी लेकिन, इस रह पर मंजिल पाना काफी मुश्किल है ऐसे में सवाल उठाता है की क्या सुनक उन उम्मीद पर खरे उतर पाएंगे जो हर भारतीय ने उनसे लगा रखी है ? क्या ऋषि ने ब्रिटेन की जनता से जो वादे किए हैं उन्हें पूरा कर पाएंगे ? क्या ऋषि एक सफल नेता साबित हो पाएंगे ? इसके अलावा यह भी सवाल खड़ा होता है की, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने से भारत पर क्या असर पड़ने वाला है क्या, वो ब्रिटेन और भारत के संबंधों को बेहतर बना पाएंगे ? भारतीय मूल के 42 वर्षीय सुनक दिवाली के दिन पहली mundert के दौर से हटने की घोषणा के बाद कंजरवेटिव पार्टी का निर्विरोध नेता चुन लिए गए। बाकी हम पहले इसमें महाराजा चार तृतीया से मुलाकात के बाद 210 साल में सबसे कम उम्र के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बने के लिए यह दिवाली विशेष बन गई।
विशेषज्ञ का कहना है की, ऋषि सुनक को कंजरवेटिव पार्टी का नेता सिर्फ इसलिए नहीं बनाया गया क्योंकि वो एक हिंदू और एक भारतीय हैं। ये मुद्दे भारत में तो महत्वपूर्ण हो सकते हैं लेकिन, इनका सूरत के चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ा जिन सांसदों ने सुनक को समर्थन दिया था उनका मकसद पहले ही नुकसान में घिर चुकी पार्टी को सुधारना था।
अपने साथियों तक पहुंचने की उनकी क्षमता और जटिल वित्तीय मसलों में उनकी समझ की वजह से उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया है। उन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर अपने पहले संबोधन में कहा की, आज हम जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
मैं उनसे उसी तरह सहानुभूति पूर्ण तरीके से निपटने का प्रयास करूंगा वह अगली पीढ़ी पर यह कहने के लिए ऋण नहीं छोड़ेंगे की, हम खुद भुगतान करने में अक्षम है। ऋषि सुनक का कहना है की, वो ब्रिटेन और इसके अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दिन रात कम करेंगे। एक मौके पर उन्होंने कहा था की, वो हिंदू हैं और भारतीय संस्कृति की विरासत रखते हैं लेकिन, पुरी तरह से ब्रिटिश नागरिक है इन बातों से स्पष्ट है की, सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने हैं तो ब्रिटिश हिट ही उनके लिए सर्वोपरि होंगे। यहां अगर भारत को लेकर बात की जाए तो सुनक जब वित्त मंत्री बने तो उन्होंने कहा था की, ब्रिटेन का उसे रो पर एक छात्र राज नहीं है। भारत में भी विशाल अवसर है और हमें सुनिश्चित करना चाहिए की, ब्रिटिश लोगों को भी भारत जाने की सुगमता हो ताकि, वे विश्व स्ट्रेस संस्थाओं में पढ़ सकें और शानदार स्टार्टअप में कम कर सकें उन्होंने कहा मैं सुनिश्चित करना चाहता हूं की, हमारे विद्यार्थी भी भारत की यात्रा करें और वहां सीखे हमारी कंपनियां और भारतीय कंपनियों के लिए भी एक साथ कम करना आसान होगा क्योंकि, ये एक तरफ संबंध नहीं होगा ये दो तरफ संबंध होगा। संबंधों में इस तरह का बदलाव चाहता हूं इसके साथ ही दोनों देशों के संबंध का मुख्य मुद्दा FTA यानी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का है। भारत और ब्रिटेन के बीच 2030 तक निवेश को बढ़ावा देने के लिए मुक्त व्यापार रोते पर हस्ताक्षर होने हैं।
सुन्नत के पीएम चुने जाते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी। भाषन में भी 2030 के रोड मैप का जिक्र करना नहीं भूले यहां आपको FTA के बारे में भी थोड़ा बता देते हैं। FTA यानी मुक्त व्यापार समझौता यह संधि अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार सहयोगी देशों के बीच एक मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने के लिए किया जाने वाला करार होता है। ये दो तरह का होता है द्विपक्षीय और बहुपक्षीय है वह द्विपक्षीय व्यापार समझौते तब होते हैं जब दो देश उन दोनों के बीच व्यापार प्रतिबंधों को ढीला करने के लिए सहमत हो जाते हैं इसके जरिए आमतौर पर व्यापार के अवसरों का विस्तार किया जाता है वह पक्षीय व्यापार समझौते तीन या इससे ज्यादा देशों के बीच होते हैं। FTA के जरिए व्यापार की बढ़ाओ को कम करने या समाप्त करने की तारीफ और ड्यूटी को निर्धारित किया जाता है। इस तरह इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित किया जाता है। इस साल जनवरी में भारत और ब्रिटेन ने औपचारिक तौर पर 2030 तक निवेश बढ़ाने के लिए मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू की थी। अप्रैल में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने दिवाली तक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने को लेकर बात की लेकिन जुलाई में कंजरवेटिव पार्टी में अंदरूनी विरोध के चलते बोरिस जॉनसन को पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा और भारत ब्रिटेन के बीच प्रस्तावित एफडीए पर आशंका के बदल मंडराने लगे। वही उनकी badress प्रधानमंत्री बने तो ब्रिटेन के वित्त मंत्री जेम्स क्लेवर ने सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र कहा की पीएम चाहते हैं की, वह प्रधानमंत्री मोदी की गिरफ्तार और महत्व आकांक्षा के साथ चलें उन्होंने ब्रिटेन और भारत के संबंध बहुत पुराने बताए और ज्यादा व्यापार और अर्थपूर्ण मुक्त व्यापार समझौता होने की इच्छा जताई भारत ब्रिटेन के मुख्य व्यापार छोटे पर 24 अक्टूबर तक हस्ताक्षर होने द लेकिन ब्रिटेन की उथल-पुथल के चलते ये संभव नहीं हो सका लेजी तरस सरकार के दौरान कार्यभार संभालने वाले ब्रिटेन के व्यापार सचिव केवी बड़े नोच ने कहा की, दोनों देशों के वार्ताकार फ्ता की डेडलाइन पर ध्यान ना देकर सौदे की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। वहीं अब नजर सुराख पर टिकी हैं दोस्तों फ्टू को लेकर यहां थोड़ा दिक्कत भी है।
भारत चाहता है की, भारतीय व्यापारियों और छात्रों को ब्रिटेन ज्यादा वीजा दे हालांकि, ब्रिटेन की गृह मंत्री को ब्रिटेन में बढ़ती भारतीय प्रवासियों की तादाद पर आपत्ति है और वो इसे लेकर नाराजगी जाता चुकी हैं भारत ब्रिटेन के लिए कपड़े ज्वैलरी फूड आइटम और चमड़े का निर्यात बढ़ाना चाहता है। साथ ही इंपॉर्टेंट ड्यूटी में रियायत चाहता है वहीं ब्रिटेन चाहता है की उसकी शराब ज्यादा विकेट और भारत व्हिस्की पर लगने वाली 150 फ़ीसदी तक की इंपोर्ट ड्यूटी को कम करें भारत के साथ ब्रिटेन चाहता है की, हिंद प्रशांत आधारित बहुपक्षीय सीपीटी पी में उसे भी भागीदारी मिले ये बहु पक्ष मुक्त व्यापार समझौता ऑस्ट्रेलिया बुरे नहीं दारू सलाम कनाडा चिली जापान मलेशिया मेक्सिको पेरू न्यूजीलैंड सिंगापुर और वियतनाम के बीच है जानकारी की माने तो ब्रिटेन के नजरिया में कोई खास बदलाव नहीं आने वाला है। उसकी विदेश नीति यूरोप अमेरिका रूस और चीन पर केंद्रित होगी वह पश्चिमी खेमे से ही शक्ति से जुड़ा रहेगा।
वही मीडिया में आए सुन्नत के बयानों से पता चलता है की, वो भारत के साथ मुक्त व्यापार संबंधित के समर्थक रहे हैं उन्होंने कहा की, दोनों देशों में रोजगार पैदा करने और भारत के लिए अपने कंज्यूमर फाइनेंशियल सर्विस इंडस्ट्री को लचीला बनाने के लिए ब्रिटेन भारत के साथ FTA के लिए पुरी तरह से प्रतिबद्ध है सुनक ने नेट जीरो एंबीशन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत को क्लाइमेट फाइनेंस की सुविधा प्रदान करने की बात भी कही। जिससे, उम्मीद की जा रही है की सुराख और मोदी प्रशासन दोनों देशों के बीच लंबी एफडीए पर जल्द कम शुरू कर देंगे वही सूत्रों की माने तो 15 16 नवंबर को इंडोनेशिया में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और ब्रिटिश पीएम ऋषि सुना की मुलाकात हो सकती है।
संवेदनशील दोनों नेताओं के बीच व्यापारिक संबंधों पर भी चर्चा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। दोस्तों एक ऐसी ब्रिटिश एशियाई हैं जिन्हें कभी किसी पहचान की जरूरत नहीं है वो एक मॉडर्न ब्रिटिश और एक हिंदू के तौर पर अपनी पहचान बना चुके हैं। सुनक पुरी तरह से इंग्लिश रंग ढंग में रहने के बाद भी उन्हें अपनी पत्नी और बच्चों के साथ फोटोग्राफ क्लिक करवाने में शर्म नहीं आती और ना ही उन्हें मंदिर में पूजा करने से कोई हिचकिचाहट है लेकिन, एक पीएम के तौर पर सुलभ के सामने सबसे बड़ी चुनौती है ब्रिटेन का आत्मविश्वास वापस लौटना यदि वो इसमें असफल होते हैं तो, फिर उनकी पृष्ठभूमि और उनके समुदाय पर सवाल उठने लगेंगे। लेकिन, अगर वो इसमें सफल रहे तो फिर निश्चित तौर पर वह पुरी दुनिया में मौजूद भारतीयों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनेंगे।